तन्दूर
(1)
सचमुच
तुम्हारे नाख़ून बहुत पैने हैं
किसी के भी वक्षस्थल को
चीर सकते हैं
गर्म लहू पी सकते हैं
मैं हवा में बात नहीं कर रहा हूँ
तन्दूर को ,
बतौर पेश कर रहा हूँ !
(2)
तन्दूर से
उठती है - आग
तन्दूर से
उठते हैं - सवाल
तन्दूर से
उठता है - तूफ़ान
यह माया जाल है सत्ता का
आग, सवाल, तूफ़ान
उठाये जाते हैं
दबाये जाते हैं
(3)
ये सड़क सीधी
सत्ता के गलियारे तक जाती है
और अपने मोहपाश में कैद कर लेती है
अरे ! क्या कहा तुमने
तुम सूरज पाना चाहती हो ?
मैं सत्य कह रहा हूँ सखी
लाख कोशिश कर लो
तुम सूरज को पाना तो दूर
छू भी नहीं सकोगी
इतना भी नहीं जानती
आखिर तन्दूर बने क्यों हैं ?
(4)
नहीं बहा था खून किसी का
सड़क पर
आज की रात
भूना गया था गोश्त
तन्दूर की आँच में
उड़ने लगी धूल
रेतीले रेगिस्तान में
अपनी संवेदनाएँ भुनातीं
रैलियाँ / सभाएँ / भाषण / और
संसद में गरमा - गरम बहसें
इनसे
होना क्या है मित्र ?
जो कल हुआ
वही आज होगा
रैलियाँ / सभाओं / भाषण / और
बहसों के बाद
हँसी / ठहाके
व्हिस्की / रम
मटन / चिकन
अरे ! अरे !
तन्दूर और गोश्त
कहाँ ? कहाँ ? **
- पवन शर्मा
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संकलन – सुनील कुमार शर्मा , जवाहर नवोदय विद्यालय , जाट बड़ोदा , जिला – सवाई माधोपुर ( राजस्थान ) , फोन नम्बर – 9414771867.
बहुत सुन्दर
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