यह नवगीत , श्रीकृष्ण शर्मा की पुस्तक - " एक नदी कोलाहल " ( नवगीत - संग्रह ) से लिया गया है -
उठ रहीं लपटें
उठा रहीं लपटें !
सो रहे थे
रात को जब लोग
मस्ती में ,
सिरफिरों ने
तब लगा दी आग
बस्ती में ;
चीख - चिल्लाहट मची थी ,
सिर्फ घबराहट बची थी ,
देखते सब राख होते ,
पर जियाले , धूल - मिट्टी
आग पर पटकें !
हादसों के
खौफ़ में डूबी
हुई राहें ,
मौत की
हर मोड़ पर फैली
हुई बाँहें ,
हर क़दम बारूद के घर ,
वहम , संशय , फ़िक्र औ ' डर ,
इन क्षणों हैं आग कितने ,
जलाने आतंक को जो
लपट बन झपटें ! **
- श्रीकृष्ण शर्मा
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संकलन – सुनील कुमार शर्मा ,
जवाहर नवोदय विद्यालय , जाट बड़ोदा , जिला – सवाई माधोपुर ( राजस्थान ) , फोन नम्बर
– 9414771867.
बहुत सुन्दर
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