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15.1.21

लघुकथाकार , कवि , कहानीकार पवन शर्मा की कहानी - " सर्वेक्षण " ( भाग - 2 )

 यह कहानी , पवन शर्मा की पुस्तक - " ये शहर है , साहब ! " से लिया गया है -





सर्वेक्षण 


 “ अपन की उमर क्या ... अपन दस साल का छोकरा भी और साठ साल का बुड्डा भी | ”

          उसके इस उत्तर पर मुझे हँसी आ गई | उसके उत्तरों को मैं प्रपत्र में लिखता जा रहा था |

          “ कौन – सी कक्षा तक पढ़े हो ? ”

          “ बिल्कुल नईं | ”

          “ क्यों ? ”

                      ( भाग - 2 )


          “ हा ... हा ... हा ... ” वह जोर से हँसा | हँसी थमने के बाद बोला , “ भूखे पेट भी कब्भी पढ़ाई होती क्या ... बताओ ... तुमिच बताओ ! ”

          मैं कुछ नहीं बोल पाया |

          मैंने विषय बदलते हुए ईँट के भट्टे की ओर इशारा कर पूछा , “ तुम यहाँ कब से काम कर रहे हो ? ”

          “ इधर कूँ पिछले बरस काम पे आया ... पैले दूसरे भट्टे पर काम करता | ”

          “ इसका मतलब की बहुत पहले से काम कर रहे हो ? ”

          “ बरोब्बर | ”

          “ लगभग कब से ? ”

          “ अन्दाजन ... ” वह थोड़ी देर के लिए रुका | उँगलियों पर गिनती की , फिर बोला , “ अन्दाजन पाँच – छः बरस से | ”

          “ ईँट के भट्टे के मालिक का व्यवहार तुम्हारे साथ तथा दूसरों के साथ कैसे है ? ”

          ठीकइच ... पेल के काम करवाता है | ”

          “ पगार समय पर देता है ? ”

          “ बरोब्बर | ”

          “ पहलेवाला ईँट के भट्टे का मालिक ? ... उसका व्यवहार ? ”

          “ वो साला खड्डूस ... एक लम्बर हर्रामी ... कोई टिकताइच नई उसके पास | ”

          “ क्यों ? ”

          “ छोकरियों ... छोकरों ... साला खड्डूस ... इसी के वास्ते छोड़ दिया उधर | ”

          “ तुम्हारे साथ भी ऐसी हरकत की उसने ...कभी भी ? ”

          अबकी बार वह चुप रहा |

          मैं उसके छोटे से जीवन के अनछुए पहलुओं को कुरेदने लगा | अब मैं सर्वेक्षण – प्रपत्र में कुछ नहीं लिख पा रहा हूँ ... बस , मैं पुच रहा हूँ , वह जवाब दे रहा है |

          हम दोनों के मध्य खामोशी उग आई |

          “ घर में कौन – कौन है ? ” मैंने खामोशी तोड़ते हुए बातचीत को दूसरी तरफ मोड़ा |

          “ माँ , बाप और बहन लोग | ”

          “ घर का खर्चा कैसे चलता है ? ” कहने का मतलब कि घर के दूसरे लोग क्या करते हैं ? ”

          “ ऐइच ... मजदूरी ... बाप कप छोड़कर ... अक्खा घर मजदूरिच करता | ”

          “ बाप को छोड़कर ! क्यों ? ”

          “ वो सारा दिन बिस्तरे परिच पड़ा रहता ... बक – कब करता रहता | ”

          “ बिस्तर पर क्यों ? ”

          “ हाथ – पाँव में लकवा लग गया उसकूँ ... उसी के वास्ते | ”

          “ तुम्हारी माँ और बहन भी मजदूरी करती हैं ? ”

          “ करता साब ... करेंगा नई तो चलेंगा कैसे ... तुमिच बताओ | ” थोड़ी देर चुप रहने के बाद वह बोला , “ अब बहन लोग काम पर नहीं जाता ... मैंने मना कर दिया | ”

          “ क्यों ? ” चार पैसे तो कमाकर ला रही थी | ”  

          “ खाक कमा के लाता ! ” कहते – कहते उसके चेहरे पर तनाव आ गया , रात – रात भर गायब रहने लगा बहन लोग ... बस , मना कर दिया | आखिर साब , इज्जत भी तो कोई चीज होता न ! ”

          “ फिर ? ”

          “ फिर क्या साब ... कुछ दिन तक तो बहन लोग घर से नई निकला ... बाद में वोइच रोल चालू कर दिया ... हम भी बोला – मरो – सड़ो ... अपन का क्या ... बहन लोगो का अपना लाइफ ... जैकी दादा का अपना लाइफ | ” कहते – कहते वह हँस दिया , “ बाद में बहन लोग भाग गया | ”

          “ कहाँ ? ”

          “ मालूम नई किधर | ”

          “ फिर ? ” अब मैं उसके निजी जीवन में झाँकने लगा |

          “ क्या होइंगा साब ... अक्खा झोपड़पट्टी में भद्द पिटा ... ” वह थोड़ी देर के लिए रुका , फिर बोला , “ कुछ दिन बाद बहन लोग लौट के वापस आ गया ... माँ लोग खुश हुआ ... लेकिन साब ... उसके बाद ... ” उसने अपनी बात अधूरी छोड़ दी |

          “ उसके बाद क्या हुआ ? ” मैंने पूछा |

          “ गोली मारो साब ... अपन की फटी क्या बताएँ | ” उसने टालना चाहा |

          “ नहीं ... नहीं ... बताओ | ” मेरे मन में सब – कुछ जानने की इच्छा प्रबल हो उठी |

          वह चुपचाप बैठा रहा |

          “ बताओ, उसके बाद क्या हुआ ? ” मैंने आग्रह किया |

          “ होइंगा क्या साब ... घर की हालत पतली ... एक टैम भरपेट तो दूसरे टैम खाली ! ”

          “ क्यों ? ... तुम्हारे माँ – बाप तो कमाते होंगे ? ”

          “ अकेले माँईच कमाता ... तब बाप को लकवा लग गया था और वो बिस्तरे पर ... दवा – दारु ... इकल्ला माँ ... तब बहन लोग का निकलनाइच बन्द था | ”

          अबकी बार मैं चुप रहा | चुप होकर सोच रहा था कि जीवन के रंग भी कैसे – कैसे होते हैं !

          मुझे चुप देख वह बोला , “ बड़ा मुसीबत आ पड़ा वो टैम | ”

          “ तुम कुछ नहीं करते थे तब ? ” मैंने पूछा |

          “ तब यार – दोस्तों के साथ मौज – मस्ती ... बस्स | ”

          “ फिर ? ”

          “ फिर क्या साब ... माँ और बहन लोग हमेशाइच गरियाने लगा मेरे कूँ | ”

          “ क्यों ? ”

          “ माँ और बहन लोग कहता कि तू निठल्ला है और निठल्लाइच रहेंगा ... कोई काम नईं करता | ”

          “ फिर ? ”

          “ मेरे कूँ गुस्सा आ गया ... इधरइच काम पे लग गया ... माँ और बहन लोगों के हाथ पे डेली बीस का पत्ता रखता ... अब तुमिच बताओ मेरे कूँ कि मैं तुमको निठल्ला लगता !” उसने कहा |

          मैं भौंचक रह गया |     

          बाल – श्रमिक सर्वेक्षण की रिपोर्ट मेरे हाथों में फड़फड़ाने लगी | इच्छा हुई कि इसे फाड़कर फेंक दूँ , लेकिन परसों जमा करनी है , अन्यथा मेरे ऊपर कार्यवाही हो सकती है |

          मैं वहाँ से निकलने की सोचने लगा | **

            

                                             - पवन शर्मा 

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पता - 

श्री नंदलाल सूद शासकीय उत्कृष्ट विद्यालय 

जुन्नारदेव , जिला – छिंदवाड़ा ( मध्यप्रदेश ) 

फोन नम्बर –   9425837079

Email –    pawansharma7079@gmail.com  


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संकलन – सुनील कुमार शर्मा , जवाहर नवोदय विद्यालय , जाट बड़ोदा , जिला – सवाई माधोपुर ( राजस्थान ) , फोन नम्बर – 9414771867. 

 

  




4 comments:

  1. सुन्दर प्रस्तुति।
    मकर संक्रान्ति का हार्दिक शुभकामनाएँ।

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    1. आदरणीय शास्त्री जी आपको भी मकर संक्रांति की बहुत - बहुत शुभ कामनाएँ |

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  2. मेरी अच्छी कहानी को प्रस्तुत करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद 🙏

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  3. आदरणीय पवन शर्मा जी , आपकी यह कहानी ज्वलन्त सामाजिक समस्या से सम्बंधित है , जो कि बहुत विचारणीय है | आज के परिपेक्ष्य में यथार्थपूर्ण है |

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