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11.7.21

कवि श्रीकृष्ण शर्मा का गीत - " साँस - साँस चलना भी दूभर अब ! "

 यह गीत , श्रीकृष्ण शर्मा की पुस्तक - " फागुन के हस्ताक्षर ( गीत - संग्रह ) से लिया गया है -












साँस - साँस चलना भी दूभर अब !


गीत तुम्हें गा - गाकर हार गये !!

               तुमको तो नहीं , किन्तु मधुवन को ,

               भौरे ये रह - रह गुंजार गये !

गीत तुम्हें गा - गाकर हार गये !!


विरल - विरल बिरवे ये , दूरी पर 

एक पाँति हुए , एक भाँती हुए ;

नदिया के ऊपर उस दिशि में वह 

बना रहे नदी और भाप - धुँए ;

               इसी तरह मिले विवश होकर तुम ,

               जब - जब भी निंदिया के पार गये !

गीत - तुम्हें गा - गाकर हार गये !!


तरुण बतख संभल - संभल पग धरती ,

अंग - अंग में थिरकन - लचकन है ;

बगुला वह सेवारों पर बैठा ,

देने निज सपनों को जीवन है ;

               कुछ कपोल फोनों के खम्भों पर 

               बैठे , जो पिया - देश तार गये !

गीत तुम्हें गा - गाकर हार गये !!


ढेरों ये स्वान - बैंजनी रंग के 

आकों के फूल व्यर्थ खिलते हैं 

झरबेरी के काँटों में उलझे ,

साड़ी के सूत व्यर्थ मिलते हैं ;

               मधुऋतु बन खिला , सजा चन्दा बन ,

               व्यर्थ सभी लेकिन सिंगार गये !

गीत तुम्हें गा - गाकर हार गये !!


अनजाने भ्रम की इन लहरों ने 

आ - आकर मुझको भरमाया है ;

पेड़ों की बाँसुरियों ने बजकर 

बरबस ही मन को भटकाया है ;

               साँस - साँस चलना भी दूभर अब ,

               प्राणों पर रख इतना भार गये !

गीत तुम्हें गा - गाकर हार गये !!  **


                        - श्रीकृष्ण शर्मा 


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संकलन – सुनील कुमार शर्मा , जवाहर नवोदय विद्यालय , जाट बड़ोदा , जिला – सवाई माधोपुर ( राजस्थान ) , फोन नम्बर – 9414771867. 

2 comments:

  1. बहुत बहुत सुन्दर सराहनीय रचना |

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  2. आपके द्वारा की गई सराहना हमारा मनोबल बढ़ाती है | आपको बहुत - बहुत धन्यवाद |

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