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17.9.21

कवि श्रीकृष्ण शर्मा का गीत - " कौन जाने ? "

 यह गीत , श्रीकृष्ण शर्मा की पुस्तक - " फागुन के हस्ताक्षर " ( गीत - संग्रह ) से लिया गया है -











कौन जाने ?

( शरद् पूर्णिमा की रात को ताज की पृष्ठभूमि में लिखित )


गीत तो गाये बहुत जाने - अनजाने ,

स्वर तुम्हारे पास पहुँचे या न पहुँचे , कौन जाने ?


उड़ गये कुछ बोल जो मेरे हवा में ,

स्यात् उनकी कुछ भनक तुमको लगी हो |

स्वप्न के निशि - होलिका में रंग - घोले ,

स्यात् कोरी नींद की चूनर रंगी हो |


भेज दी मैंने तुम्हें लिख ज्योति - पाती ,

साँझ - बाती के समय दीपक जलाने के बहाने !

गीत तो गये  बहुत ...


ये शरद् का चाँद सपना देखता है ,

आज किस बिछुड़ी हुई मुमताज का यों ?

गुम्बदों में गूँजती प्रतिध्वनि उड़ाती ,

आज ये उपहास हर आवाज़ का क्यों ?


संगमरमर पर चरन ये चाँदनी के ,

बुन रहे किस रूप के रंगीन ताने और बाने ?

गीत तो गये बहुत ...


छू गुलाबी रात का शीतल - सुखद तन ,

आज मौसम ने सभी आदत बदल दी |

ओस - कन में दूब की गीली बरौनी ,

छोड़ कर ये रिमझिमें किस ओर चल दीं ? 


कौन - सी धरती सुलगती देख कर के ,

आज बादल बन गये हैं इस धरा को ही वीराने ?

गीत तो गाये बहुत ...


प्रात की किरनें कमल के लोचनों में ,

और धुँधला शशि हुआ जाता दिए में |

रात का जादू मिटा जाता इसी से ,

एक अनजानी कसक जगती हिये में |

ग्रह - उपग्रह टूटते टकरा सपन के ,

जबकि आकर्षण पड़े हैं सौरमण्डल के पुराने !

गीत तो गाये बहुत जाने - अनजाने ,

स्वर तुम्हारे पास पहुँचे या न पहुँचे , कौन जाने ?  **


                                    - श्रीकृष्ण शर्मा 

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संकलन – सुनील कुमार शर्मा , जवाहर नवोदय विद्यालय , जाट बड़ोदा , जिला – सवाई माधोपुर ( राजस्थान ) , फोन नम्बर – 9414771867.

2 comments:

  1. बहुत बहुत सुन्दर सराहनीय गीत ।

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  2. धन्यवाद , आदरणीय आलोक सिन्हा जी |

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