Followers

20.12.21

कवि श्रीकृष्ण शर्मा का नवगीत - " फूट रहे कुल्ले "

 यह नवगीत, श्रीकृष्ण शर्मा की पुस्तक - " एक नदी कोलाहाल " ( नवगीत - संग्रह ) से लिया गया है -











फूट रहे कुल्ले 


झूठ नहीं ,

ठूँठ था यहाँ पर 

अब ठूँठ नहीं |


फूट रहे कुल्ले 

ज्यों चन्द्रमा ,

बीहड़ को फोड़ 

उग रहा समा ;


अंधे आतंक से ,

तू टूट नहीं |


मंच के नियामक 

तो चले गये ,

बॉबी से बाहर 

विष - सर्प नये ;


फन पर रख बूट ,

अगर मूँठ नहीं |   **


          - श्रीकृष्ण शर्मा 

------------------------

सम्पर्क -  सुनील कुमार शर्मा , फोन नम्बर - 9414771867.

No comments:

Post a Comment

आपको यह पढ़ कर कैसा लगा | कृपया अपने विचार नीचे दिए हुए Enter your Comment में लिख कर प्रोत्साहित करने की कृपा करें | धन्यवाद |