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16.3.21

कवि श्रीकृष्ण शर्मा का नवगीत - " उठ रहीं लपटें "

 यह नवगीत , श्रीकृष्ण शर्मा की पुस्तक - " एक नदी कोलाहल " ( नवगीत - संग्रह ) से लिया गया है -














उठ रहीं लपटें 


उठा रहीं लपटें !


सो रहे थे 

रात को जब लोग 

मस्ती में ,

सिरफिरों ने 

तब लगा दी आग 

बस्ती में ;


चीख - चिल्लाहट मची थी ,

सिर्फ घबराहट बची थी ,

देखते सब राख होते ,

पर जियाले , धूल - मिट्टी 

आग पर पटकें !


हादसों के 

खौफ़ में डूबी 

हुई राहें ,

मौत की 

हर मोड़ पर फैली 

हुई बाँहें ,


हर क़दम बारूद के घर ,

वहम , संशय , फ़िक्र औ ' डर ,

इन क्षणों हैं आग कितने ,

जलाने आतंक को जो 

लपट बन झपटें ! **


                  - श्रीकृष्ण शर्मा 


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संकलन – सुनील कुमार शर्मा , जवाहर नवोदय विद्यालय , जाट बड़ोदा , जिला – सवाई माधोपुर ( राजस्थान ) , फोन नम्बर – 9414771867.


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