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13.4.20

नंगी दीवारें


                 ( प्रस्तुत कविता- पवन शर्मा की पुस्तक -'' किसी भी वारदात के बाद '' से ली गई है )

                  नंगी दीवार 

दरवाज़ा पुश करके वह अन्दर घुस गया | उसे देख उनकी भौंहें तिरछी हो गईं , ' अब तुम ऑफिस में भी आने लगे ! '
          ' आना ही पड़ेगा | '  वह ढीठ होकर कुर्सी पर बैठ गया |
          यहाँ नहीं आना चाहिए तुम्हें | '  उन्होंने उसके चेहरे पर नजरें गड़ा दीं |
          ' डर लगता है ! '
          वे कुछ नहीं कहते |
          ' इस लिए कि किसी को पता न चल जाए - इमेज बिगड़ सकती है ... है न ! '
          उन्होंने उसके चेहरे से नजरें हटा लीं | पूछा ,  ' क्या काम है ? '
          ' वो वहाँ पेट फुलाए बैठी है|डिलीवरी होने को है|कभी भी हो जाए | '
          उन्होंने गुस्से में उसकी ओर देखा और जेब से पर्स निकालकर सौ - सौ के कुछ नोट उसकी ओर बढ़ाये और बोले , ' लो रखो | '
          नोट लेकर उसने गिने और बोला , ' इतने में काम नहीं चलेगा | '
          ' सचमुच बहुत कमीने हो ! ' उसकी बात सुनकर उन्होंने दांत पीसे |
          अचानक उसके चेहरे पर सख्ती उभर आई और बोला ,  ' हमसे अधिक कमीने तुम हो - सफेदपोश ! ... अपनी कामान्धता के पीछे गाँव की उस भोली - भाली लड़की की इज्जत तो तुमने कहीं की नहीं रखी | अब फसे हो तुम उसकी गिरफ्त में | तडफड़ा रहे हो मुक्त होने के लिए ... किन्तु मुक्ति नहीं मिलेगी तुम्हें | ' 
          उसके जाने के बाद वे ऑफिस की दीवारों को बड़ी गहरी नजरों से घूर रहे थे - जैसे दीवार पूर्णरूप से नंगी हो | **

   - पवन शर्मा 
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पता
श्री नंदलाल सूद शासकीय उत्कृष्ट  विद्यालय ,
जुन्नारदेव  , जिला - छिन्दवाड़ा ( म.प्र.) 480551
फो. नं. - 9425837079 .
ईमेल – pawansharma7079@gmail.com

संकलन - सुनील कुमार शर्मा, पी.जी.टी.(इतिहास),जवाहर नवोदय विद्यालय,जाट बड़ोदा,जिलासवाई माधोपुर  ( राजस्थान ),फोन नम्बर– 09414771867

2 comments:

  1. जब सच की पोल खुल जाती है तो दीवरें भी नग्न हो जाती हैं
    बहुत खूब।

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  2. बहुत सुंदर लघुकथा।

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